Saturday, 17 October 2015


" शक्ति की भक्ति करे भारत "

क्या भारतीय साहित्यकारों की कलम शक्ति क्षीण हुई हें...?

दोस्तों, आज शक्ति आरधना पर्व नवरात्री का पांचवा दिन है और आओ आज हम भारतीय साहित्यकारों की कलम शक्ति की जो समाज के बदलाव के लिए जिम्मेदार होती हैं उस विषय पर कुछ चर्चा करते हैं.

हाल ही में दादरीकांड के विरोध मे तक़रीबन 21 साहित्यकारों ने अपने अवोर्ड भारत सरकार को लौटा दिये हैं ये कहो की भारत सरकार का खुल्ला विरोध किया है.

क्या डेढ दो लाख रूपए का पुरस्कार लौटाने से साहित्यकारों की जिम्मेवारी पूरी हो जाती हें...?

क्या पुरस्कार लौटाने वाली घटना सिर्फ एक तरफी सोच और अपनी कलम शक्ति की फर्ज का अपमान नहीं हैं...?

दोस्तों, एक वो दिन थे की जिनकी कवितायें और साहित्य पर भारत की युवाशक्ति मरती थी और वो साहित्य भी सत्य, देशप्रेम, नैतिकता, मानवता, भाईचारा, शांति-प्रेम जैसे उच्च मानवीय मूल्यों पर आधारित था.

और ये दंभी साहित्यकार जिन्होंने पुरष्कार लौटाये हैं उनकी रचना और लिखा पट्टी को कौनसा आम आदमी पढता हैं...?

टॉलस्टॉय और बर्नार्ड शो की कोपिया करके जिन्दा रहनेवाले ये दंभी साहित्यकारों से मेरा सवाल हैं की जब तस्लीमा नसरीन पर आफत तूट पड़ी तब कहा थे आप लोग...?

क्या 96 करोड़ हिंदू और पाकिस्तान से भी ज्यादा मुस्लिम वाले इस देश मे ऐसी छोटी-मोटी घटनाये नहीं घट सकती...?

विश्व की प्राचीनतम भारतीय संस्कृति की आस्था को विश्व के सामने मजाक बनाया जा रहा हे तब कहां गये ये साहित्यकार...?

आप कौन से समाज की रचना करना चाहते हो ? यदि भारतीय जनमानस में परिवर्तन आया हैं तो भारतीय साहित्यकारों कि जिम्मेवारी नहीं बनती हैं...?

दोस्तों, सच्चे और निडर साहित्यकारो की कलम का जिन्दा रहना मानव समाज के लिए बहोत जरुरी हैं. आज पुरे विश्व की शांति-अमन खतरे मैं हे और आतंकवाद मानवसमाज का दुश्मन बन के अपनी घिनोनी हरकते दिखा रहा हैं तब साहित्यकारों की कलम शक्ति का प्रभाव जरुरी हैं की वो कलम क्षीण ना होके मानवीय महामुल्यो के लिये जाती, धर्म, देश से ऊपर उठके समग्र विश्व एवम प्रकृति के कल्याण हेतु मानवजात को प्रेरित करे...

ना की लोकतांत्रिक देश के अकादमी का अवोर्ड लौटाके, लोकतंत्र का अपमान और अवमानना करे...!!!

शक्ति की भक्ति करे भारत...

आप सबका निलेश राजगोर

दिनांक : 17/10/2015


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