Sunday 22 June 2014

प्रिय दोस्तों,

आजादी के बाद देश की एकता, अखंडता के लिए प्रथम बलिदानी योद्धा और भारतीय जनसंघ के संस्थापक को बलिदान दिन पर शत-शत नमन...

डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी (Dr. Shyama Prasad Mukherjee) महान शिक्षाविद, चिन्तक होने के साथ साथ भारतीय जनसंघ के संस्थापक भी थे, जिन्हें आज भी एक प्रखर राष्ट्रवादी और कट्टर देशभक्त (Patriot) के रूप में याद किया जाता है. 6 जुलाई, 1901 को कोलकाता (Kolkata) के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में जन्में डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी (Dr.Shyama Prasad Mukherjee) जी के पिता श्री आशुतोष मुखर्जी (Ashutosh Mukherjee) बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे. बाल्यावस्था से ही उनकी अप्रतिम प्रतिभा की छाप दिखने लग गई थी. कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभा सम्पन्न डॉ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक तथा 1921 में बी ए की उपाधि प्राप्त की, जिसके पश्चात् 1923 में उन्होंने लॉ (Law) की उपाधि अर्जित की और 1926 में वे इंग्लैण्ड (England) से बैरिस्टर बन स्वदेश लौटे. उन्होंने अपने ज्ञान और विचारों से तथा तात्कालिक परिदृश्य की ज्वलंत परिस्थितियों का इतना सटीक विश्लेषण किया कि समाज के हर वर्ग और तबके के बुद्धिजीवियों को उनकी बुद्धि का कायल होना पड़ा. अपनी कुशाग्र बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए मात्र 33 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय (Kolkata University) के कुलपति का पदभार संभालने की जिम्मेदारी उठा ली.

जल्द ही उन्होंने तत्कालीन शासन व्यवस्था और सामाजिक-राजनैतिक परिस्थितियों के विशद जानकार के रूप में समाज में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया था. एक राजनैतिक दल (Political Party) की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति (Muslim Appeasement Policy) के कारण जब बंगाल (Bengal) की सत्ता मुस्लिम लीग (Muslim League) की गोद में डाल दी गई और 1938 में आठ प्रदेशों में अपनी सत्ता छोड़ने की आत्मघाती और देश विरोधी नीति अपनाई गई तब डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से देशप्रेम और राष्ट्रप्रेम का अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया.

डॉ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता (Humanity) के उपासक और सिद्धांतों के पक्के इंसान थे. संसद में उन्होंने सदैव राष्ट्रीय एकता (National Integrity) की स्थापना को ही अपना प्रथम लक्ष्य रखा. संसद में दिए अपने भाषण में उन्होंने पुरजोर शब्दों में कहा था कि राष्ट्रीय एकता के धरातल पर ही सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है.

उस समय जम्मू काश्मीर (Jammu-Kashmir) का अलग झंडा था, अलग संविधान (Constitution) था. वहां का मुख्यमंत्री (Chief Minister) प्रधानमंत्री (Prime minister) कहलाता था. लेकिन डॉ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थेजिसके लिए उन्होंने जोरदार नारा भी बुलंद किया कि – एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगें. अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि “या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा’’. जम्मू कश्मीर (Jammu-kashmir) में प्रवेश करने पर डॉ. मुखर्जी को 11 मई, 1953 को शेख अब्दुल्ला (Shekh Abdulla) के नेतृत्व वाली सरकार ने हिरासत में ले लिया था. क्योंकि उन दिनों कश्मीर में प्रवेश करने के लिए भारतीयों को एक प्रकार से पासपोर्ट (Passport) टाइप का परमिट लेना पडता था और डॉ मुखर्जी बिना परमिट (Permit) लिए जम्मू कश्मीर चले गए थे. जहां उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया और वहां गिरफ्तार होने के कुछ दिन बाद ही 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई.

वे भारत के लिए शहीद हो गए और भारत ने एक ऐसा व्यक्तित्व (Personality) खो दिया जो राजनीति को एक नई दिशा दे सकता था. डॉ मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि (Cultural Aspect) से हम सब एक हैं, इसलिए धर्म के आधार पर किसी भी तरह के विभाजन (Division) के वे सख्त खिलाफ थे. उनका मानना था कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं, हममें कोई अंतर नहीं है. हमारी भाषा एक है हमारी संस्कृति एक है और यही हमारी विरासत है. लेकिन उनके इन विचारों और उनकी मंशाओं को अन्य राजनैतिक दलों के तात्कालिक नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया. लेकिन इसके बावजूद लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया.

भारतीय इतिहास में उनकी छवि एक कर्मठ और जुझारू व्यक्तित्व वाले ऐसे इंसान की है जो अपनी मृत्यु के इतने वर्षों बाद भी अनेक भारतवासियों के आदर्श और पथप्रदर्शक हैं.

Tuesday 17 June 2014

प्रिय दोस्तों,

२३ जुन डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिन हैं और भारतीय जनता युवा मोरचा गुजरात प्रदेश हर साल रक्तदान करके देश के शहीदवीर डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जिन्होंने कश्मीर को बचाने के लिए अपना बलिदान दिया उनको श्रधांजलि अर्पित करता हैं |

रक्तदान जीवनदान है। हमारे द्वारा किया गया रक्तदान कई जिंदगियों को बचाता है। इस बात का अहसास हमें तब होता है जब हमारा कोई अपना खून के लिए जिंदगी और मौत के बीच जूझता है। उस वक्त हम नींद से जागते हैं और उसे बचाने के लिए खून के इंतजाम की जद्दोजहद करते हैं।

अनायास दुर्घटना या बीमारी का शिकार हममें से कोई भी हो सकता है। आज हम सभी शिक्षि‍त व सभ्य समाज के नागरिक है, जो केवल अपनी नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी सोचते हैं तो क्यों नहीं हम रक्तदान के पुनीत कार्य में अपना सहयोग प्रदान करें और लोगों को जीवनदान दें।

कौन कर सकता है रक्तदान :
* कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी आयु 18 से 68 वर्ष के बीच हो।
* जिसका वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो।
* जिसके रक्त में हिमोग्लोबिन का प्रतिशत 12 प्रतिशत से अधिक हो।

आओ हम सभी युवा मानवजीवन बचाने के इस महाँ अभियान में आगे आए और ज्यादा से ज्यादा रक्तदान करवाए और खुद भी रक्तदान करे |

- आप सबका
निलेश राजगोर
प्रदेश कन्वीनर:प्रशिक्षण सेल, भारतीय जनता युवा मोर्चो, गुजरात प्रदेश.

Thursday 5 June 2014

પ્રિય મિત્રો,

આપ સૌ જાણો છો તેમ આજે ૫ જુન વિશ્વ પર્યાવરણ દિવસ છે જેની ઉજવણી વિશ્વભરમાં થઇ રહી છે. આજના આ પર્યાવરણ દિવસે પર્યાવરણ માટે કામ અને ચિંતા કરતા સૌ કાર્યકર્તાઓ, સંસ્થાઓને હું દિલથી અભિનંદન આપું છુ.

મિત્રો, જે રીતે વિશ્વનું પર્યાવરણ જોખમાઈ રહ્યું છે તે રીતે સમગ્ર માનવજાત નું અસ્તિત્વ પણ જોખમમાં છે અને જેના અનુભવો આપણે સૌ કરી રહ્યા છીએ. જેમ કે ઋતુચક્રમાં બદલાવ, ભયંકર વાવાઝોડા, સુનામી, પુર, દુકાળ, ભયંકર ગરમી, સમુદ્રની સપાટી ઝડપથી વધવી, અનેક જાતિ-પ્રજાતિઓ લુપ્ત થવી વગેરે ગ્લોબલ વોર્મિંગના ભયંકર પરિણામોનો અણસાર આપી રહ્યા છે જે માનવસમાજ માટે ચેતાવણી છે.

માલદીવ ટાપુ જે સમગ્ર દુનિયામાં કુદરતી સૌન્દર્ય માટે જાણીતો છે જે આપણી નજર સમક્ષ ડુબવા તરફ જઈ રહ્યો છે અને વિશ્વના બીજા ટાપુ દેશો ફીજી, રિકો, પાલાઉ, પોર્ટુ વગેરે પણ દરિયાની વધતી સપાટી થી ચિતિત છે ત્યારે વિકાસની આંધળી દોટમાં પર્યાવરણને જો નહિ જાળવીએ તો આવનારા થોડા વર્ષોમાં વિશ્વના દરિયાકિનારાના અનેક નગરો પણ દરિયામાં ડૂબી જશે. ટૂંકમાં કુદરતની માનવસમાજને પર્યાવરણ જાળવવાની ચેતવણી છે જેને આપણે ગંભીરતાથી લઇને ખરા અર્થમાં કામ કરવું પડશે.

આવો આપણે સૌ ૫ જુન વિશ્વ પર્યાવરણ દિવસ ના સંકલ્પ કરીએ કે નાના-નાના પગલાઓ ઉઠાવીએ જેવા કે વધુમાં વધુ વ્રુક્ષો વાવીએ, વ્રુક્ષો કપાતા અટકાવીએ, પ્રદુષણ ઓછુ કરીએ, વીજળી બચાવીએ, વસ્તી-વધારો અટકાવીએ વગેરેમાં શરૂઆત આપણાથી કરીએ અને આપણા જ અસ્તિત્વ માટે પૃથ્વીને બચાવીએ.

અને છેલ્લે મહાત્મા ગાંધીએ કીધેલી પંક્તિઓ દ્વારા આપ સૌને વિચાર કરવા વિનંતી.

"યહ ધરતી સમગ્ર સૃષ્ટી કી ભૂખ મીટા સકતી હૈ પરંતુ લોભ કો નહી,
ઔર હમ ભૂખ કો છોડકર લોભ કે પીછે ભાગ રહે હૈ "

- આપ સૌનો નીલેશ રાજગોર