दोस्तों, बात पुरानी है...
किन्तु इतनी भी पुरानी नहीं है की उसे ऐतिहासिक कहा जाये....
ब्रिटिश शासन जब चल रहा था तब गुजरात के पानेली गांव मे एक घटना घटी. पूंजा वालजी नाम का एक लोहाणा जाती के वणिक ने मछली बेचने का व्यापार किया उसका सामाजिक बहिष्कार हुआ. प्रतिकार के रूप में उसने खोजापंथी शियाई धर्म का स्वीकार किया और मुसलमान बना. उसके तिन बेटे हुए. नथू, गांगजी, और झीणा...
झीणा अपने परिवार के साथ करांची जा पंहुचा उसकी सात संताने हुई. उसमे से एक बेटे का नाम महंमद अली था...
दोस्तों, क्या आप सोच सकते है की हिंदू से मुसलमान बने उसी पूंजा वालजी के पोते ने भारत का एक हिस्सा हंमेशा के लिए हिन्दुओ से छीन लिया. जिसे हम आज कट्टरपंथी पाकिस्तान के नाम से जानते है. और वोही झीणा के बेटे को आज पाकिस्तान का राष्र् पिता माना जाता है जिसे वहां के मुसलमान कायदे आज़म झीणा के नाम से जानते है...
अब सोचिए की 19मी सदि में हिंदूओ से लबालब भरा अखंड भारत एक किसी व्यक्ति के विधर्मी हो जाने से कितना भयानक नतीजा पैदा कर सकता है...
यही संकोचन 1876 से चला आ रहा है. आज जिसे लोग तालिबानी आतंकवाद के नाम पर जानते है वो अफ़घानिस्तान हिंदुओ से भरा था वहां पर बामनिया नाम के नगर में भारी तादाद में ब्राह्मणों की आबादी होने से उससे बामनिया नाम आरबो की और से दे दिया गया जो आज भी बामनिया नाम से जाना जाता है. किन्तु अफसोस... की हिंदू और शिख मिलकर महज आठ हजार हिंदू वहा बचे है. उनमे से भी अधिकतम अफ़घानिस्तान को अलविदा करने की तयारी में है...
जिसे हम सोनार बांग्ला कहते थे परसों ही दुर्गा की मूर्ति के मंडप को तहस नहस किया गया क्योंकि वो अब सोनार बांग्ला न रहते हुए कट्टर इस्लामिक बांग्लादेश बन गया है...
मणिपुरी ब्राह्मणों से और त्रिपुरा छात्रों से कभी प्रभावित होकर जिस प्रदेश ने अपने आपको ब्रह्मदेश के नाम से जाना था वो अंग्रेजो के शासन आते आते बर्मा बन गया. आज वो माओवादी विचारधारा का म्यानमार कहलाता है...
दोस्तों, ब्रिटिश शासक भारत से जब गए तब तिब्बत भारत को रखवाली के तौर पे दे गए थे. नेहरू के शासन में वहा हमारी छे बड़ी लश्करी चौकिया 1958 तक तिरंगा फहराती थी, हमारी ही संकोचन वृत्ति के कारण चीन ने आक्रमण किया, तिब्बत तो गया ही गया किन्तु गढ़वाल का आधा हिस्सा और काश्मीर से सटा हुआ अक्षय चीन भी हम गंवा बैठे...
दोस्तों, वर्मन और कंबोज ब्राह्मणों के सेनापतिओ से हिंदमहासागर में अपना लोहा मनवाने वाले सेनापतिओ ने इंडोनेशिया, कम्बोडिया, थाईलेंड तक अपना साम्राज्य विस्तारित किया था किन्तु उसका उदगम स्थान श्रीलंका भी आज हमारे पास नहीं है.
जिस पर हम गौरव करते थे की भले हम लोकतांत्रिक हो गये है किन्तु आज एक हिंदू राष्ट्र हिमालय की पहाडीओ में सिना ताने खड़ा है, वो हमारे ही सामने एक महीने पेहले हिंदुराष्ट्र में से लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष बन गया और साथ साथ भारत का एक शत्रु भी बन गया...
इतिहास से लेकर वर्तमान तक कभी सोचा है हिंदुओ का कितना संकोचन हुआ है....?
में कह सकता हु इसे शायद महासंकोचन कहना ही ठीक रहेगा, क्योंकि हिंदू Home Alone है. (अपने ही घर में अकेला)
आज भी संकोचन की प्रक्रिया उतनी ही तीव्र गति से अपना प्रभाव दिखा रही है, कश्मीर हमसे अलग होने को आकाश-पातल कर रहा है....
माओवादी विचारधारा ने झारखंड, छत्तीसगढ़, पस्चिम बंगाल, आसाम और आंध्र प्रदेश तक दस्तक दी है और हम कथित धर्म के तौर पर जिये जा रहे है...
दोस्तों, " वीर भोग्या वसुंधरा " की उक्ति हमें चीख चीख कर कह रही है शक्ति की उपासना हो... संकोचन तभी विस्तारण का रूप धारण करेगा, शक्ति ही सर्वोपरि है, वो चाहे शस्त्रों की शक्ति हो या फिर संगठन की......
शक्ति की भक्ति करे भारत....
आप सबका निलेश राजगोर
दिनांक : 21/10/2015