दोस्तों, आज मेरी नजर क्रांतिकारी संत श्री स्वामी सच्चिदानंदजी के सूत्र "वीरता परमो धर्म" को सार्थक करने वाले इस पवित्र चित्र पर पड़ी, जिसमे शीखो के 9 वें गुरु औरे गुरु गोविन्दसिंहजी के पिता गुरु तेगबहादुर का पवित्र "शीश", 16 साल के गुरु गोविन्दसिंहजी और सभी बहादुर भक्त-जन दिख रहे है . इस चित्र को देखकर मुझे बहोत बड़ा गर्व हुआ और जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया ऐसे गुरु तेगबहादुरजी , गुरु गोविन्दसिंहजी और पुरे शीख धर्म के लिए मेरा शीश नम्रता से उनके चरणों में जुकाया और सोचा की शायद पुरे भारत का हिन्दू धर्म " वीरता परमो धर्म" सूत्र को सार्थक करे .
दोस्तों हिन्दू धर्म में बिना शीश के अग्नि संस्कार नहीं किया जा सकता , फिर भी बड़े दुःख और शर्मिंदगी की बात है मेरे और आपके ही एक भाई शहीद वीर हेमराज के पवित्र शरीर को बिना "शीश" के ही अग्निसंस्कार देना पड़ा . यह हिन्दू धर्म के विरुद्ध है लेकिन गलती उसकी और उसके परिवार की है की उसने 125 करोड़ आबादी वाले, दुनिया के दुसरे नंबर की लश्करी ताकत वाले, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (दंभी, कायर और निष्फल लोकतंत्र) पर विश्वास किया और सबकुछ न्योछावर भी किया . लेकिन इस देश ने इस शहीद के "शीश" को पाकिस्तानी कुत्तो से वापस न लाकर जो कायरता दिखाई वो किसी भी सैनिक का और इस देश के नागरिक का मनोबल तोड़ने वाला उदाहरन दिया है . हम सब को इस बारे में सोचना चाहिए की हमारी गलती कहां हो रही है ? क्यों हम दिन प्रतिदिन इतने कायर होते जा रहे है ?
मेरे खयाल से हमारे धार्मिक ब्ल्यू-प्रिन्ट में कुछ बदलाव की जरुरत है . इस देश मे हजारो की संख्या मे धार्मिक संप्रदाय दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे है, लेकिन हम 'धर्म' की स्थापना अभी तक नहीं कर पाए है . मेरे हिसाब से धर्म का अर्थ है कर्तव्य, नैतिकता, बहादुरी, सच्चाई, दया आदि. और अगर इस देश में सही माइने में धर्म प्रस्थापित होता तो इस देश का हरएक नागरिक सच्चा , बहादुर और कर्तव्य निष्ठ होता और आज अपना देश दुनिया के सामने दिन प्रतिदिन "मजाक" न बनता . कृपया इस चित्र में से प्रेरणा ले और "वीरता परमो धर्म" का सूत्र अपनाये .
अंत में गुरु तेगबहादुरजी के "शीश" को औरंगजेब और उसकी क्रूर सेना से बहादुरी पूर्वक लानेवाले मेहतर ज्ञाति (दलित ज्ञाति) के दोनों बहादुर बाप-बेटे 'धरमदास' और 'नानकदास' को कोटि कोटि नमन .
-आप का निलेश राजगोर