Friday, 27 December 2013
Wednesday, 30 October 2013
પ્રિય મિત્રો...
આવતીકાલે અખંડ ભારતના શિલ્પી અને સાચા મહાપુરૂષ શ્રી સરદાર પટેલની ૧૩૯મી જન્મજયંતિ છે. આવો આપણે સૌ જેમની કરણી અને કથની એક હતી તેવા મહાપુરૂષ સરદાર વલ્લભભાઇ પટેલ અને તેમના માતા-પિતાને કોટી-કોટી વંદન કરીએ અને સાચી પ્રેરણા લઇ દેશ માટે ખરેખર કંઇક સારું કાર્ય કરીએ...
જય સરદાર સાથે...આપ સૌનો નિલેશ રાજગોર...
Monday, 21 October 2013
क्रांतिकारी शहीद अशफाक उल्ला खान के 114 वें जन्मदिवस पर उनको शत-शत नमन...
अशफाकुल्ला खान ने राम प्रसाद बिस्मिल के साथ अपना जीवन माँ भारती को समर्पित कर दिया था... वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान यौद्धा थे... वो दोनों अच्छे मित्र और उर्दू शायर थे... राम प्रसाद का उपनाम (तखल्लुस) 'बिस्मिल' था, वहीँ अशफाक 'वारसी' और बाद में 'हसरत' के उपनाम से लिखते थे..भारतीय आज़ादी में इन दोनों का त्याग और योगदान युवा पीढ़ियों के लिए धार्मिक एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र की अनुपम मिसाल है... दोनों को एक ही तारीख, दिन और समय पर फांसी दी गई.. केवल जेल अलग अलग (फैजाबाद और गोरखपुर) थी...
अशफाक का जन्म 22 अक्तूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ.. उनके पिता पठान शफिकुल्लाह खान और माँ मज़हूर-उन-निसा थे..अशफाक उनके चार बेटों में सबसे छोटे थे... उनके पिता पुलिस विभाग में थे...
अशफाक के बड़े भाई रियासत उल्लाह खान राम प्रसाद बिस्मिल के सहपाठी थे.. जब बिस्मिल मैनपुरी षड़यन्त्र के बाद फरार घोषित हुए तो रियासत उनके बहादुरी और उर्दू शायरी के बारे में छोटे भाई अशफाक को बताते थे... तब से अशफाक अपने काव्यात्मक दृष्टिकोण के कारण बिस्मिल से मिलने के लिए बहुत उत्सुक थे... 1920 में बिस्मिल शाहजहाँपुर आये तो अशफाक ने बहुत बार कोशिश की उनसे संपर्क की लेकिन बिस्मिल ने ध्यान नहीं दिया..
1922 में जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ और शाहजहाँपुर में आंदोलन के बारे में जनता को बताने के लिए बिस्मिल आये... अशफाक उल्लाह ने एक सार्वजनिक बैठक में उनसे मुलाकात की और खुद को दोस्त के एक छोटे भाई के रूप में पेश किया. उन्होंने यह भी बिस्मिल से कहा कि वह 'वारसी' और 'हसरत' के कलम नाम से लिखते हैं... बिस्मिल ने उनकी शायरी की कुछ बात सुनी और तब से वे अच्छे दोस्त बन गए.
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य थे... हालांकि उन दोनो मे किसी भी धार्मिक समुदाय के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह मन में कभी नहीं था.. इसके पीछे एक ही कारण है कि दोनों का उद्देश्य भारत की आज़ादी था…
1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन वापस लेने से अशफाक भी उदास थे..
उन्होंने महसूस किया कि भारत जल्द से जल्द आज़ाद हो जाना चाहिए और इसलिए क्रांतिकारियों में शामिल होने का फैसला किया.. क्रांतिकारियों को लगा कि अहिंसा के नरम शब्दों से भारत अपनी आजादी नहीं पा सकता है, इसलिए वे बम, रिवाल्वर और अन्य हथियारों का उपयोग करके भारत में रहने वाले अंग्रेजों के दिलों में डर पैदा करना चाहते थे. हालांकि ब्रिटिश साम्राज्य बड़ा और मजबूत था, लेकिन कुछ अंग्रेज ही देश को चला रहे थे, गांधी और दूसरे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं द्वारा अपनाई गई कायरता और गैर हिंसक नीति के कारण...
कांग्रेस के तथाकथित नेताओं द्वारा गैर सहयोग आंदोलन की वापसी से क्रांतिकारी देश भर में बिखरे हुए थे और नए क्रांतिकारी आंदोलन को शुरू करने के लिए पैसे की आवश्यकता थी... एक दिन शाहजहांपुर से लखनऊ की यात्रा में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने नोटिस किया कि हर स्टेशन पर स्टेशन मास्टर एक रुपयों का बैग गार्ड को देता है जो गार्ड के केबिन में एक तिजोरी में रखे जाते हैं और ये सारा पैसा लखनऊ जंक्शन के स्टेशन अधीक्षक को सौंप दिया गया था. बिस्मिल ने इन सरकारी पैसों को लूटकर उसी सरकार के खिलाफ उपयोग करने का फैसला किया जो लगातार 300 से अधिक वर्षों से भारत को लूट रही थी. बस यही 'काकोरी ट्रेन डकैती' की शुरुआत थी...
अपने आंदोलन को बढ़ावा देने और हथियार और गोला बारूद को खरीदने के लिए क्रांतिकारियों ने 8 अगस्त, 1925 को शाहजहाँपुर में एक बैठक का आयोजन किया... बहुत विचार-विमर्श के बाद 8-डाउन सहारनपुर-लखनऊ यात्री गाड़ी में सरकारी राजकोष की लूट का फैसला किया गया था. 9 अगस्त, 1925 को अशफाकुल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आठ अन्य क्रांतिकारियों ने ट्रेन को लूट लिया... वे थे वाराणसी से राजेंद्र लाहिड़ी, बंगाल से सचिन्द्र नाथ बख्शी, उन्नाव से चंद्रशेखर आजाद, कलकत्ता से केशब चक्रवोर्ति, रायबरेली से बनवारी लाल, इटावा से मुकुन्दी लाल, बनारस से मन्मथ नाथ गुप्ता और शाहजहाँपुर से मुरारी लाल थे...
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के साहस पर चकित थी... वाइसराय ने स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस को मामले की जांच के लिए तैनात किया... एक महीने में गुप्तचर विभाग ने सुराग एकत्र कर लगभग सभी क्रांतिकारियों की रातोंरात गिरफ्तारी का फैसला किया. 26 सितंबर, 1925 पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और शाहजहाँपुर से दूसरों को सुबह पुलिस ने गिरफ्तार किया लेकिन अशफाक लापता थे.. अशफाक बनारस और फिर वहां से बिहार दस महीनों के लिए एक इंजीनियरिंग कंपनी में काम करने के लिए चले गए... वह विदेश जाने और स्वतंत्रता संग्राम में अपनी मदद के लिए लाला हर दयाल से मिलना चाहते थे... कैसे देश के बाहर जाया जाये उसके तरीके खोजने के लिए वह दिल्ली चले गए... दिल्ली में उनके पठान दोस्त ने मदद के बदले में उन्हें धोखा दिया और पुलिस ने अशफाक को गिरफ्तार कर लिया...
तसद्दुक हुसैन तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने बिस्मिल और अशफाक के बीच सांप्रदायिक राजनीति खेलने की कोशिश की... उन्हें सरकारी गवाह बनाने की कोशिश की... उसने अशफाक को हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काने की कोशिश की.. लेकिन अशफाक मज़बूत इरादों वाले सच्चे भारतीय थे और उन्होंने तसद्दुक हुसैन को ये कहकर अचम्भे में डाल दिया, "खान साहिब, मैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को आपसे ज्यादा जानता हूँ... फिर भी अगर आप सही कर रहे हैं तो 'हिन्दू भारत' ज्यादा अच्छा है उस 'ब्रिटिश भारत' से जिसकी आप नौकर की तरह सेवा कर रहे हैं.. "
अशफाकुल्ला खान को फैजाबाद जेल में हिरासत में भेज दिया गया था... उनके खिलाफ मामला दायर किया गया था. उनके भाई रियासत उल्ला खान ने कृपा शंकर हजेला, एक वरिष्ठ अधिवक्ता को उनके मामले की दलील में एक परामर्शदाता के रूप में नियुक्त किया.. श्री हजेला ने बहुत कोशिश की और अंत तक लड़े, लेकिन वह अशफाक के जीवन को नहीं बचा सके.
जेल में रहते हुए अशफाक रोज पांच बार 'नमाज' पढ़ते थे..
काकोरी साजिश के मामले में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा दी गई... जबकि सोलह अन्य को चार साल से कठोर आजीवन कारावास की सजा तक दी गई...
एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार बुधवार को, फांसी पर लटकाने से चार दिन पहले दो अंग्रेजी अधिकारियों ने अशफाकुल्ला खान की कोठरी में देखा.. वह अपनी नमाज के बीच में थे... उनमें से एक ने चुटकी लेते हुए कहा- "मैं देखना चाहता हूँ कि इसमे कितनी आस्था बची रहती है जब हम इसे चूहे की तरह लटका देंगे." लेकिन अशफाक हमेशा की तरह अपनी प्रार्थना में मशगूल रहे... और वो दोनों बड़बड़ाते हुए चले गए...
सोमवार, 19 दिसम्बर 1927 अशफाकुल्ला खान फांसी के तख्ते पर आये.. जैसे ही उनकी बेड़ियाँ खोली गईं, उन्होने फांसी की रस्सी को इन शब्दों के साथ चूमा "किसी आदमी की हत्या से मेरे हाथ गंदे नहीं हैं.. मेरे खिलाफ तय किए आरोप नंगे झूठ हैं... अल्लाह मुझे न्याय दे देंगे.."
और फिर उन्होंने उर्दू में 'शहादा' पढ़ा...
फांसी का फंदा उनके गले के पास आया
और आज़ादी के आंदोलन ने एक चमकता सितारा आकाश में खो दिया...
शहीद अश्फाक 'हसरत' की कुछ हसरतें लिख रहा हूँ-
कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह
रख दे कोई ज़रा सी खाके वतन कफ़न में..
ए पुख्तकार उल्फत होशियार, डिग ना जाना,
मराज आशकां है इस दार और रसन में...
न कोई इंग्लिश है न कोई जर्मन,
न कोई रशियन है न कोई तुर्की..
मिटाने वाले हैं अपने हिंदी,
जो आज हमको मिटा रहे हैं...
बुजदिलो को ही सदा मौत से डरते देखा,
गो कि सौ बार उन्हें रोज़ ही मरते देखा..
मौत से वीर को हमने नहीं डरते देखा,
मौत को एक बार जब आना है तो डरना क्या है,
हम सदा खेल ही समझा किये, मरना क्या है..
वतन हमेशा रहे शादकाम और आज़ाद,
हमारा क्या है, अगर हम रहे, रहे न रहे...
मौत और ज़िन्दगी है दुनिया का सब तमाशा,
फरमान कृष्ण का था, अर्जुन को बीच रन में..
"जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा,
जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं "फिर आऊँगा,फिर आऊँगा,
फिर आकर के ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊँगा".
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,
मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ..
हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा,
और जन्नत के बदले उससे इक पुनर्जन्म ही माँगूंगा.."
"किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाये,
ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना..
मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं,
जबाँ तुम हो लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना."
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत....
अशफाकुल्ला खान ने राम प्रसाद बिस्मिल के साथ अपना जीवन माँ भारती को समर्पित कर दिया था... वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान यौद्धा थे... वो दोनों अच्छे मित्र और उर्दू शायर थे... राम प्रसाद का उपनाम (तखल्लुस) 'बिस्मिल' था, वहीँ अशफाक 'वारसी' और बाद में 'हसरत' के उपनाम से लिखते थे..भारतीय आज़ादी में इन दोनों का त्याग और योगदान युवा पीढ़ियों के लिए धार्मिक एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र की अनुपम मिसाल है... दोनों को एक ही तारीख, दिन और समय पर फांसी दी गई.. केवल जेल अलग अलग (फैजाबाद और गोरखपुर) थी...
अशफाक का जन्म 22 अक्तूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ.. उनके पिता पठान शफिकुल्लाह खान और माँ मज़हूर-उन-निसा थे..अशफाक उनके चार बेटों में सबसे छोटे थे... उनके पिता पुलिस विभाग में थे...
अशफाक के बड़े भाई रियासत उल्लाह खान राम प्रसाद बिस्मिल के सहपाठी थे.. जब बिस्मिल मैनपुरी षड़यन्त्र के बाद फरार घोषित हुए तो रियासत उनके बहादुरी और उर्दू शायरी के बारे में छोटे भाई अशफाक को बताते थे... तब से अशफाक अपने काव्यात्मक दृष्टिकोण के कारण बिस्मिल से मिलने के लिए बहुत उत्सुक थे... 1920 में बिस्मिल शाहजहाँपुर आये तो अशफाक ने बहुत बार कोशिश की उनसे संपर्क की लेकिन बिस्मिल ने ध्यान नहीं दिया..
1922 में जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ और शाहजहाँपुर में आंदोलन के बारे में जनता को बताने के लिए बिस्मिल आये... अशफाक उल्लाह ने एक सार्वजनिक बैठक में उनसे मुलाकात की और खुद को दोस्त के एक छोटे भाई के रूप में पेश किया. उन्होंने यह भी बिस्मिल से कहा कि वह 'वारसी' और 'हसरत' के कलम नाम से लिखते हैं... बिस्मिल ने उनकी शायरी की कुछ बात सुनी और तब से वे अच्छे दोस्त बन गए.
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य थे... हालांकि उन दोनो मे किसी भी धार्मिक समुदाय के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह मन में कभी नहीं था.. इसके पीछे एक ही कारण है कि दोनों का उद्देश्य भारत की आज़ादी था…
1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन वापस लेने से अशफाक भी उदास थे..
उन्होंने महसूस किया कि भारत जल्द से जल्द आज़ाद हो जाना चाहिए और इसलिए क्रांतिकारियों में शामिल होने का फैसला किया.. क्रांतिकारियों को लगा कि अहिंसा के नरम शब्दों से भारत अपनी आजादी नहीं पा सकता है, इसलिए वे बम, रिवाल्वर और अन्य हथियारों का उपयोग करके भारत में रहने वाले अंग्रेजों के दिलों में डर पैदा करना चाहते थे. हालांकि ब्रिटिश साम्राज्य बड़ा और मजबूत था, लेकिन कुछ अंग्रेज ही देश को चला रहे थे, गांधी और दूसरे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं द्वारा अपनाई गई कायरता और गैर हिंसक नीति के कारण...
कांग्रेस के तथाकथित नेताओं द्वारा गैर सहयोग आंदोलन की वापसी से क्रांतिकारी देश भर में बिखरे हुए थे और नए क्रांतिकारी आंदोलन को शुरू करने के लिए पैसे की आवश्यकता थी... एक दिन शाहजहांपुर से लखनऊ की यात्रा में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल ने नोटिस किया कि हर स्टेशन पर स्टेशन मास्टर एक रुपयों का बैग गार्ड को देता है जो गार्ड के केबिन में एक तिजोरी में रखे जाते हैं और ये सारा पैसा लखनऊ जंक्शन के स्टेशन अधीक्षक को सौंप दिया गया था. बिस्मिल ने इन सरकारी पैसों को लूटकर उसी सरकार के खिलाफ उपयोग करने का फैसला किया जो लगातार 300 से अधिक वर्षों से भारत को लूट रही थी. बस यही 'काकोरी ट्रेन डकैती' की शुरुआत थी...
अपने आंदोलन को बढ़ावा देने और हथियार और गोला बारूद को खरीदने के लिए क्रांतिकारियों ने 8 अगस्त, 1925 को शाहजहाँपुर में एक बैठक का आयोजन किया... बहुत विचार-विमर्श के बाद 8-डाउन सहारनपुर-लखनऊ यात्री गाड़ी में सरकारी राजकोष की लूट का फैसला किया गया था. 9 अगस्त, 1925 को अशफाकुल्ला खान और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आठ अन्य क्रांतिकारियों ने ट्रेन को लूट लिया... वे थे वाराणसी से राजेंद्र लाहिड़ी, बंगाल से सचिन्द्र नाथ बख्शी, उन्नाव से चंद्रशेखर आजाद, कलकत्ता से केशब चक्रवोर्ति, रायबरेली से बनवारी लाल, इटावा से मुकुन्दी लाल, बनारस से मन्मथ नाथ गुप्ता और शाहजहाँपुर से मुरारी लाल थे...
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के साहस पर चकित थी... वाइसराय ने स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस को मामले की जांच के लिए तैनात किया... एक महीने में गुप्तचर विभाग ने सुराग एकत्र कर लगभग सभी क्रांतिकारियों की रातोंरात गिरफ्तारी का फैसला किया. 26 सितंबर, 1925 पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और शाहजहाँपुर से दूसरों को सुबह पुलिस ने गिरफ्तार किया लेकिन अशफाक लापता थे.. अशफाक बनारस और फिर वहां से बिहार दस महीनों के लिए एक इंजीनियरिंग कंपनी में काम करने के लिए चले गए... वह विदेश जाने और स्वतंत्रता संग्राम में अपनी मदद के लिए लाला हर दयाल से मिलना चाहते थे... कैसे देश के बाहर जाया जाये उसके तरीके खोजने के लिए वह दिल्ली चले गए... दिल्ली में उनके पठान दोस्त ने मदद के बदले में उन्हें धोखा दिया और पुलिस ने अशफाक को गिरफ्तार कर लिया...
तसद्दुक हुसैन तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने बिस्मिल और अशफाक के बीच सांप्रदायिक राजनीति खेलने की कोशिश की... उन्हें सरकारी गवाह बनाने की कोशिश की... उसने अशफाक को हिन्दू धर्म के खिलाफ भड़काने की कोशिश की.. लेकिन अशफाक मज़बूत इरादों वाले सच्चे भारतीय थे और उन्होंने तसद्दुक हुसैन को ये कहकर अचम्भे में डाल दिया, "खान साहिब, मैं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को आपसे ज्यादा जानता हूँ... फिर भी अगर आप सही कर रहे हैं तो 'हिन्दू भारत' ज्यादा अच्छा है उस 'ब्रिटिश भारत' से जिसकी आप नौकर की तरह सेवा कर रहे हैं.. "
अशफाकुल्ला खान को फैजाबाद जेल में हिरासत में भेज दिया गया था... उनके खिलाफ मामला दायर किया गया था. उनके भाई रियासत उल्ला खान ने कृपा शंकर हजेला, एक वरिष्ठ अधिवक्ता को उनके मामले की दलील में एक परामर्शदाता के रूप में नियुक्त किया.. श्री हजेला ने बहुत कोशिश की और अंत तक लड़े, लेकिन वह अशफाक के जीवन को नहीं बचा सके.
जेल में रहते हुए अशफाक रोज पांच बार 'नमाज' पढ़ते थे..
काकोरी साजिश के मामले में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा दी गई... जबकि सोलह अन्य को चार साल से कठोर आजीवन कारावास की सजा तक दी गई...
एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार बुधवार को, फांसी पर लटकाने से चार दिन पहले दो अंग्रेजी अधिकारियों ने अशफाकुल्ला खान की कोठरी में देखा.. वह अपनी नमाज के बीच में थे... उनमें से एक ने चुटकी लेते हुए कहा- "मैं देखना चाहता हूँ कि इसमे कितनी आस्था बची रहती है जब हम इसे चूहे की तरह लटका देंगे." लेकिन अशफाक हमेशा की तरह अपनी प्रार्थना में मशगूल रहे... और वो दोनों बड़बड़ाते हुए चले गए...
सोमवार, 19 दिसम्बर 1927 अशफाकुल्ला खान फांसी के तख्ते पर आये.. जैसे ही उनकी बेड़ियाँ खोली गईं, उन्होने फांसी की रस्सी को इन शब्दों के साथ चूमा "किसी आदमी की हत्या से मेरे हाथ गंदे नहीं हैं.. मेरे खिलाफ तय किए आरोप नंगे झूठ हैं... अल्लाह मुझे न्याय दे देंगे.."
और फिर उन्होंने उर्दू में 'शहादा' पढ़ा...
फांसी का फंदा उनके गले के पास आया
और आज़ादी के आंदोलन ने एक चमकता सितारा आकाश में खो दिया...
शहीद अश्फाक 'हसरत' की कुछ हसरतें लिख रहा हूँ-
कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह
रख दे कोई ज़रा सी खाके वतन कफ़न में..
ए पुख्तकार उल्फत होशियार, डिग ना जाना,
मराज आशकां है इस दार और रसन में...
न कोई इंग्लिश है न कोई जर्मन,
न कोई रशियन है न कोई तुर्की..
मिटाने वाले हैं अपने हिंदी,
जो आज हमको मिटा रहे हैं...
बुजदिलो को ही सदा मौत से डरते देखा,
गो कि सौ बार उन्हें रोज़ ही मरते देखा..
मौत से वीर को हमने नहीं डरते देखा,
मौत को एक बार जब आना है तो डरना क्या है,
हम सदा खेल ही समझा किये, मरना क्या है..
वतन हमेशा रहे शादकाम और आज़ाद,
हमारा क्या है, अगर हम रहे, रहे न रहे...
मौत और ज़िन्दगी है दुनिया का सब तमाशा,
फरमान कृष्ण का था, अर्जुन को बीच रन में..
"जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा,
जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं "फिर आऊँगा,फिर आऊँगा,
फिर आकर के ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊँगा".
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,
मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ..
हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा,
और जन्नत के बदले उससे इक पुनर्जन्म ही माँगूंगा.."
"किये थे काम हमने भी जो कुछ भी हमसे बन पाये,
ये बातें तब की हैं आज़ाद थे और था शबाब अपना..
मगर अब तो जो कुछ भी हैं उम्मीदें बस वो तुमसे हैं,
जबाँ तुम हो लबे-बाम आ चुका है आफताब अपना."
वन्दे मातरम्...
जय हिंद... जय भारत....
Saturday, 12 October 2013
शक्ति की भक्ति करे भारत...
Dear All Friends, विजया दशमी के शुभ दिन पर आप सबको ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाए|
शक्ति की भक्ति का पर्व पूरा हो रहा है और आज हम सब असत्य के सामने सत्य के जीत की खुशियाँ मना रहे है तब "शक्ति की भक्ति" title बनाकर मैंने आप सब के सामने अपने देश को शक्तिशाली बनाने की कुछ बाते रखी थी जो मेरा एक नम्र प्रयास था की आप सबके माध्यम के द्वारा अच्छी बातो को देश के सामने रखूँ और जिसमे आप सब ने अच्छा सहयोग दिया|
आज में सिर्फ इतना कहना चाहता हुं की हमें इतना महान धर्म और देश मिला है की हम सब गौरव ले शकते है और हमें अपनी भव्य संस्कृति को दुनिया के सामने शक्तिशाली बनाए रखना है और इसलिए हमें सही माइने में विश्व के साथ कदम मिलाना होगा| आज अमरीका, ब्रिटन, इसरायेल, जर्मनी, चीन, जापान जैसे देश जो विश्व पर राज कर रहे है वोह सिर्फ और सिर्फ उनकी देश दाज और शक्ति की साधना है| देश के लिए वोह कोई समाधान नहीं करते| जबकि आज हमारे देश में क्या चल रहा है वोह आप सब जानते है| आओ हम सब शुरुआत अपने आप से करे और खुद को शक्ति शाली बनाए और देश के लिए अपने पास जो भी योग्यता है उसका 100% योगदान देश के लिए दे|...
-- निलेश राजगोर
Dear All Friends, विजया दशमी के शुभ दिन पर आप सबको ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाए|
शक्ति की भक्ति का पर्व पूरा हो रहा है और आज हम सब असत्य के सामने सत्य के जीत की खुशियाँ मना रहे है तब "शक्ति की भक्ति" title बनाकर मैंने आप सब के सामने अपने देश को शक्तिशाली बनाने की कुछ बाते रखी थी जो मेरा एक नम्र प्रयास था की आप सबके माध्यम के द्वारा अच्छी बातो को देश के सामने रखूँ और जिसमे आप सब ने अच्छा सहयोग दिया|
आज में सिर्फ इतना कहना चाहता हुं की हमें इतना महान धर्म और देश मिला है की हम सब गौरव ले शकते है और हमें अपनी भव्य संस्कृति को दुनिया के सामने शक्तिशाली बनाए रखना है और इसलिए हमें सही माइने में विश्व के साथ कदम मिलाना होगा| आज अमरीका, ब्रिटन, इसरायेल, जर्मनी, चीन, जापान जैसे देश जो विश्व पर राज कर रहे है वोह सिर्फ और सिर्फ उनकी देश दाज और शक्ति की साधना है| देश के लिए वोह कोई समाधान नहीं करते| जबकि आज हमारे देश में क्या चल रहा है वोह आप सब जानते है| आओ हम सब शुरुआत अपने आप से करे और खुद को शक्ति शाली बनाए और देश के लिए अपने पास जो भी योग्यता है उसका 100% योगदान देश के लिए दे|...
-- निलेश राजगोर
Sunday, 6 October 2013
શક્તિની ભક્તિ કરે ભારત...
પ્રિય મિત્રો, આજે શક્તિ ની ભક્તિ નો બીજો દિવસ છે, ત્યારે આપણે સૌને ખરેખર શક્તિ ની સાચી ઉપાસના કરવાની જરૂર છે તેની પ્રેરણા સદૈવ દેશહિત ની ચિંતા કરતા પ. પૂજ્ય સ્વામી નિજાનંદજી દ્વારા મુકાયેલ નકશો અને તેમણે મુકેલ ચીને પચાવી પાડેલ ભારતીય પ્રદેશ નો વાસ્તવિક ચિતાર ઘણું બધું કહી જાય છે. શું આપને નથી લાગતું કે વિશ્વ ની બીજા નંબરની સૌથી વધુ વસ્તી ધરાવતો અને વિશ્વની બીજા નંબર ની લશ્કરી તાકાત (17.5 Lacs) ધરાવતો આ દેશ આઝાદ થયો ત્યારથી ભારતીય પ્રદેશો ગુમાવ્યા સીવાય કઈ કર્યું છે ખરું??? જો કે એના માટે આપણું સૈન્ય શક્તિ જવાબદાર નથી કારણ કે નિર્ણયો તો રાજનેતાઓ એ જ કરવાના હોય છે. તો આપણે સૌએ અને હાકોટા અને પાકોટા કરતા બોદા રાજનેતાઓએ વાસ્તવિકતા સ્વીકારી આ દેશને સાચા અર્થ માં શક્તિ ની ભક્તિ તરફ વાળવો જોઈએ અને શક્તિ ની ભક્તિ એટલે ઇઝરાયેલ (વિશ્વનો ગુજરાત થી પણ નાનો અને અનેક દુશ્મન દેશો થી ઘેરાયેલો દેશ) જે આપણને ઘણી બધી પ્રેરણા આપી જાય છે...
હજુ કાલે નવો સંદેશ આપવાનો હોવાથી શક્તિ ની ભક્તિ ના પર્વ ના આ બીજા દિવસે આદ્યશક્તિ જગતજનની જગદંબા આપણને સૌને સાચી ભક્તિ, શક્તિ અને દિશા આપે કે આપણે આપણા દેશને વિશ્વ માં એક સન્માનજનક અને આગવું સ્થાન અપાવી શકીએ એવી પ્રાથના સાથે આપ સૌને જય અંબે...
--આપનો નીલેશ રાજગોર
Friday, 4 October 2013
પ્રિય મિત્રો, આજથી શક્તિ ની ભક્તિ નું પર્વ નવરાત્રી શરુ થઇ ગઈ છે ત્યારે પૂજ્ય સ્વામી
નીજાનન્દજી ના Facebook માં મુકેલ આ પાકિસ્તાને પચાવી પાડેલ ભારત
નું માથું અને તેમની કોમેન્ટ વાંચી મને ઉચિત લાગ્યું કે હૂં તેમની ભારત માતા માટે
ની ચિંતા આપ લોકો સુધી પહોંચાડું... જેની આપ સૌ ગંભીરતાથી નોધ લેશો...
મિત્રો તમને નથી લાગતું કે આપણે શક્તિ ની સાચી સાધના કરવી જોઈએ જેનાથી આપણી માતૃભુમી, બહેન, દીકરી અને ધર્મ ની રક્ષા કરી શકીએ તેટલી તાકાત ભારત ના યુવાનો માં હોય... સ્વામીજી દ્વારા કરાયેલ કોમેન્ટ દ્વારા મને લાગે છે કે આપણે સ્વાભિમાની બનવું જોઈએ નહિ કે મિથ્યાભિમાની...
ભારત નું શીષ બચાવી શક્યા કે પાછું મેળવી શક્યા નથી ત્યારે આપણે સૌએ શક્તિની સાચી સાધના કરી ખરેખર શક્તિશાળી સમાજ ની રચના કરવી જ રહી નહીતર ગંભીર પરિણામો ભાવી પેઢીએ ભોગવવા જ રહ્યા...
માં જગદંબા મને, તમને અને આ દેશ ના દિશાહીન તમામ રાજનેતાઓ ને સાચી દ્રષ્ટિ, ભક્તિ અને શક્તિ અર્પે તેવી પ્રાર્થના સહ
-- આપનો નીલેશ રાજગોર..
મિત્રો તમને નથી લાગતું કે આપણે શક્તિ ની સાચી સાધના કરવી જોઈએ જેનાથી આપણી માતૃભુમી, બહેન, દીકરી અને ધર્મ ની રક્ષા કરી શકીએ તેટલી તાકાત ભારત ના યુવાનો માં હોય... સ્વામીજી દ્વારા કરાયેલ કોમેન્ટ દ્વારા મને લાગે છે કે આપણે સ્વાભિમાની બનવું જોઈએ નહિ કે મિથ્યાભિમાની...
ભારત નું શીષ બચાવી શક્યા કે પાછું મેળવી શક્યા નથી ત્યારે આપણે સૌએ શક્તિની સાચી સાધના કરી ખરેખર શક્તિશાળી સમાજ ની રચના કરવી જ રહી નહીતર ગંભીર પરિણામો ભાવી પેઢીએ ભોગવવા જ રહ્યા...
માં જગદંબા મને, તમને અને આ દેશ ના દિશાહીન તમામ રાજનેતાઓ ને સાચી દ્રષ્ટિ, ભક્તિ અને શક્તિ અર્પે તેવી પ્રાર્થના સહ
-- આપનો નીલેશ રાજગોર..
પ્રિય મિત્રો,
આજે ભારતના સપૂત ક્રાંતિગુરુ શ્રી શ્યામજી કૃષ્ણવર્માની જન્મ જયંતી છે.
લંડનમાં ઈન્ડિયા હાઉસની સ્થાપના કરી ભારતમાતાની સ્વતંત્રતા માટે જેમણે અનેક ક્રાંતિકારીઓને વિદેશની ધરતી પર રહી પ્રેરણા પૂરી પાડી હતી એવા આપણા કચ્છના પનોતા પુત્ર અને મહાપુરુષ ને કોટી-કોટી વંદન... - નિલેશ રાજગોર
વધુ માહિતી માટે ક્લિક કરો..,
આજે ભારતના સપૂત ક્રાંતિગુરુ શ્રી શ્યામજી કૃષ્ણવર્માની જન્મ જયંતી છે.
લંડનમાં ઈન્ડિયા હાઉસની સ્થાપના કરી ભારતમાતાની સ્વતંત્રતા માટે જેમણે અનેક ક્રાંતિકારીઓને વિદેશની ધરતી પર રહી પ્રેરણા પૂરી પાડી હતી એવા આપણા કચ્છના પનોતા પુત્ર અને મહાપુરુષ ને કોટી-કોટી વંદન... - નિલેશ રાજગોર
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Wednesday, 25 September 2013
પ્રિય મિત્રો,
આજે ૨૫ સપ્ટેમ્બર પંડિત દીનદયાલ ઉપાધ્યાયજીની જન્મ-જયંતી છે.ભારતના રાજનૈતિક
જીવનને પ્રભાવિત કરનારી આ મહાન વિભૂતિએ સમાજના અંતિમ વ્યક્તિને કેન્દ્રમાં રાખી
ભારતના આર્થિક,સામાજિક વિકાસ પર વિશેષ ઝોક આપી આપણને “એકાત્મ માનવ દર્શન” નો વિચાર
આપ્યો હતો, જેમણે પોતાનું સમગ્ર
જીવન સંગઠનનો વ્યાપ વિસ્તાર અને દ્રઢીકરણમાં ખપાવી દીધું હતું અને ભારતીય જનતા
પાર્ટીને આજે નાનકડા બીજમાંથી મોટું વટવ્રુક્ષ બનાવી રાષ્ટ્રની સેવા માટે એક તક અપાવી
છે તેવાં કુશળ સંગઠક અને પ્રખર ચિન્તક પંડિત દીનદયાલ ઉપાધ્યાયજીને કોટી-કોટી નમન કરી આવો તેમના
વિચારોને આત્મસાત કરી છેવાડાના માનવીની ચિંતા કરી રાષ્ટ્રને સમર્પ્રિત થઈએ અને
જ્યાં હજુ સુધી અંધારું છે ત્યાં દીવો બનીં પ્રકાશ ફેલાવવાની કોશિશ કરીએ....જય
હિન્દ...વંદે માતરમ.... – નિલેશ
રાજગોર..
Monday, 16 September 2013
माननीय नरेन्द्रभाई मोदीजी को 64 वे जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाए...
प्रिय दोस्तो,
आज हम सबके प्रिय और १२७ करोड़ भारतीयो के स्वप्न साकार करने के लिए जो दिन-रात मेहनत करते है ऐसे माननीय नरेन्द्रभाई मोदीजी का 64 वा जन्मदिन है.
में इश्वर से प्रार्थना करता हू की उनके सभी स्वप्न साकार करे और उनको देश और दुनिया की सेवा के लिए दीर्घायु दे...
आज जन्मदिन के मोके पर में उनकी माताजी एवं पिताजी को शत शत नमन करता हू की जिन्होंने ऐसे महान आत्मा को जन्म दिया...
-आप सबका निलेश राजगोर
(प्रदेश कन्वीनर प्रशिक्षण सेल BJYM गुजरात)
आज हम सबके प्रिय और १२७ करोड़ भारतीयो के स्वप्न साकार करने के लिए जो दिन-रात मेहनत करते है ऐसे माननीय नरेन्द्रभाई मोदीजी का 64 वा जन्मदिन है.
में इश्वर से प्रार्थना करता हू की उनके सभी स्वप्न साकार करे और उनको देश और दुनिया की सेवा के लिए दीर्घायु दे...
आज जन्मदिन के मोके पर में उनकी माताजी एवं पिताजी को शत शत नमन करता हू की जिन्होंने ऐसे महान आत्मा को जन्म दिया...
-आप सबका निलेश राजगोर
(प्रदेश कन्वीनर प्रशिक्षण सेल BJYM गुजरात)
Wednesday, 11 September 2013
Friday, 6 September 2013
પર્યાવરણ બચાવો
પ્રિય મિત્રો,
સુપ્રભાત......
પર્યાવરણ બચાવોના ભાગરૂપે અમારા ટ્રસ્ટ દ્વારા તા.7-8-2013 એ પાટણની નજીક કેશવ પ્રકૃતિ સેન્ટરનું અમે લોકોએ ૪૦૦ વૃક્ષ વાવેતર કરી શરૂઆત કરી છે.આ જગ્યામાં વિવિધ જાતના વૃક્ષો ઉછેરવામાં આવશે તથા વૃક્ષ દત્તક યોજના અંતર્ગત પર્યાવરણ પ્રેમી મિત્રો વૃક્ષ દત્તક પણ લઇ શકશે.
આવો આપણે સૌ પર્યાવરણ બચાવો અભિયાનમાં વધુમાં વધુ વૃક્ષો વાવીએ/ઉછેરીએ...
- આપનો નીલેશે રાજગોર
સુપ્રભાત......
પર્યાવરણ બચાવોના ભાગરૂપે અમારા ટ્રસ્ટ દ્વારા તા.7-8-2013 એ પાટણની નજીક કેશવ પ્રકૃતિ સેન્ટરનું અમે લોકોએ ૪૦૦ વૃક્ષ વાવેતર કરી શરૂઆત કરી છે.આ જગ્યામાં વિવિધ જાતના વૃક્ષો ઉછેરવામાં આવશે તથા વૃક્ષ દત્તક યોજના અંતર્ગત પર્યાવરણ પ્રેમી મિત્રો વૃક્ષ દત્તક પણ લઇ શકશે.
આવો આપણે સૌ પર્યાવરણ બચાવો અભિયાનમાં વધુમાં વધુ વૃક્ષો વાવીએ/ઉછેરીએ...
- આપનો નીલેશે રાજગોર
Thursday, 11 July 2013
Dear Friends,
Today 11 july is World Population Day and i would like to share the great story of passenger pigeon which are not exist today. Martha, The Last Passenger Pigeon(Bird) was Milestone for Over Population and Aware us to Save Environment... Our Life is depend on Whole World Environment... If We don't worry about Environment and think only about Mankind than We will also put in Worst Situation like Passenger Pigeon which also were around 7 billion.
So Please Read History of Passenger Pigeon and Save Environment...
The Passenger Pigeon or Wild Pigeon (Ectopistes migratorius) was a bird that existed in North America until the early 20th century when it became extinct due to hunting and habitat destruction. The species lived in enormous migratory flocks. One sighting in 1866 in southern Ontario was described as being 1 mile (1.61 kilometres) wide, 300 miles (483 kilometres) long, and taking 14 hours to pass a single point with number estimates in excess of 3.5 billion birds in the flock. That number, if accurate, would likely represent a large fraction of the entire population at the time.
Some estimate that there were 3 billion to 5 billion Passenger Pigeons in the United States when Europeans arrived in North America. Others argue that the species had not been common in the Pre-Columbian period, but their numbers grew when devastation of the American Indian population by European diseases led to reduced competition for food.
The species went from being one of the most abundant birds in the world during the 19th century to extinction early in the 20th century.At the time, Passenger Pigeons had one of the largest groups or flocks of any animal, second only to the Rocky Mountain locust.
Some reduction in numbers occurred because of habitat loss when the Europeans started settling further inland, especially as it was accompanied by mass deforestation and conversion of habitat to farming. The primary factor emerged when pigeon meat was commercialized as a cheap food for slaves and the poor in the 19th century, resulting in hunting on a massive and mechanized scale. There was a slow decline in their numbers between about 1800 and 1870, followed by a catastrophic decline between 1870 and 1890. Martha, thought to be the world's last Passenger Pigeon, died on September 1, 1914, at the Cincinnati Zoo...
- Nilesh Rajgor
Dear Friends, On World Population Day Now We are more than 7,15,55,12,525...(715 crore) My Humbly Suggestion to World that We have to think about Over Population and take little steps to stop Over Population...
Otherwise We will put in worst situation like PASSENGER PIGEON or WILD PIGEON... One of the reason for Global Warming is OVER POPULATION and We all know very well because of Global Warming What is the result for World? Wake Up World........
Wednesday, 19 June 2013
प्रिय दोस्तों
उत्तर भारत में खासतौर से उत्तराखंड और
हिमाचल प्रदेश में बाढ़ ने जो तांडव मचाया है, उससे वहां जिंदगियां जिस मुश्किल में फंसी है, उसे देखकर हम सब बहोत बहुत दुखी है.
बाढ़ ने 70,000 से ज्यादा को बेघर कर दिया
है .सरकारी आंकड़ा जो मर्ज़ी हो, पर सच ये है कि सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. 2 दिन तक सरकार को स्थिति का अंदाजा ही नही
था. 2 दिन के बाद जो मदद गयी, उससे पहले ही बाढ़ तबाही मचा चुकी थी.
सुन्दरलाल बहुगुणा जी, जिन्होंने गाँधी जी के चिपको आन्दोलन में
महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी, उन्होंने 10 साल पहले ही आगाह किया था, कि “पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को गंगा नदी कभी माफ़ नही करेगी”. पर सरकार ने सिर्फ अमीर माफियायों की परवाह की. सुन्दरलाल जी ने यहाँ तक कहा था,कि अगर भारी बरसात में हरिद्वार का बाँध टूटा तो मेरठ और दिल्ली तक मुसीबत
आएगी. टिहरी की पहाड़ियों
को थामने के लिए पेड़ों का नामोनिशान नही है.
माफिया प्रकृति के साथ जो मजाक कर रहे हैं, उसकी भरपाई मासूम लोगों की जान से हो रही है. सरकार इन्हें रोकने के लिए कोई कड़े कदम
नही उठाती. हालातों का
पूर्वानुमान होने पर भी कोई पुख्ता इंतजाम नही होते. अब परिणाम भीषण और दुखद हैं. इसकी चपेट में आये लोगों की आत्मा को
ईश्वर शांति प्रदान करे |
ॐ शांति...ॐ शांति...ॐ शांति...ॐ शांति...
Tuesday, 11 June 2013
પ્રિય મિત્રો,
આ તસ્વીર દ્વારા મારો ઉદ્દેશ માત્ર એટલો છે કે કોઈપણ વસ્તુનું મુલ્ય જો આપણે નહી સમજી શકીએ તો પછી તેને ગુમાવ્યા પછી ઘણું મોડું થઇ ગયું હોય છે. માટે જીવનમાં મળેલ દરેક વસ્તુનું મુલ્ય સમજીએ અને તેનો સદુપયોગ કરીએ.
(સમય ઓછો હોવાથી વધુ લખી શકું તેમ નથી પણ આપ સૌ જાતે જ વિચારજો.)
-આપ સૌનો નીલેશ રાજગોર
Tuesday, 30 April 2013
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