Thursday, 25 December 2014
Wednesday, 3 December 2014
प्रिय दोस्तों,
आज के दिन 3/12/1984 की सुबह लाशों के ढेर लग गए थे ।
वो दर्दनाक हादसा जिसकी यादें सुनकर, आँखें नम हो जाती हे ।
“…हर जिस्म जहर हो गया एक दिन
मुर्दों का शहर हो गया भोपाल एक दिन"
वर्ष १९८४ की वह मनहूस रात कों यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक सयंत्र से मिथाईल आइसोनाइड गैस का रिसाव होने से हज़ारों लोगों की मौत हो गयी थी |
भोपाल गैस त्रासदी के के ऊपर लिखी गई एक कविता में आपके सामने रख रहा हु,
चीख पुकार का वो मौत का मंज़र,
उस मनहूस रात को करीब से देखा मैंने …
न जाने कितने गुनहगारों को लील गयी वो
अपने ही हाथों से मौत को फिसलते हुए, करीब से देखा मैंने…
धरती कों प्यासा छोड़ गयी वो
भूख से तडपते हुओ को करीब से देखा मैंने …
शहर का हर वो कोना जिसमे बस लाशें ही लाशें
क्योंाकि लाशे से पटती धरती कों करीब से देखा मैंने …..
चिमनी से निकलता हुआ वो ज़हरीला धुँआ
शहर को मौत की आगोश में सोते हुए, करीब से देखा मैंने ..
२६ साल से बाकी है अभी वो दर्द
लोगो को आंधे, बहरे और अपंग होते हुए, करीब से देखा मैंने ….
याद आता है माँ का वो आंचल
माँ के आसुओं को बहते हुए, करीब से देखा मैंने …
भोपाल गैस त्रासदी के मृतकों को श्रद्धांजलि ।
- निलेश राजगोर
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